एकदिवसीय प्रतियोगिता---(लेखनी में हमारा सफ़र)
लेखन ऐसी कला है कि कोई भी व्यक्ति अपनी संवेदनाएंँ और मनोदशा अपने शब्दों के माध्यम से दूसरों तक पहुँचा सकता है,हर किसी के भीतर एक लेखक होता है लेकिन जो अपनी अभिव्यक्ति प्रदर्शित कर देता है वो लेखक बन जाता है,लेखक के लिए सबसे बड़ी बात होती है कि उसका जैसा व्यक्तित्व है वो अपनी रचनाओं के माध्यम से दूसरों को दिखा पाता है या नहीं,क्योंकि आपकी रचनाओं में ही आपका व्यक्तित्व झलकता है कि आप कैसें हैं?चुलबुले हैं,गम्भीर हैं,अन्तर्मुखी हैं या बहिर्मुखी हैं और भी बहुत कूछ.....
मेरे ख्याल से हर लेखक को वो लिखना चाहिए जो उसका मन करें ना कि वो लिखना चाहिए जो दूसरों का मन करें,हर व्यक्ति का अपना अपना मिज़ाज और खूबियाँ होतीं हैं और वो उसी हिसाब से अपना लेखन करता है,एक लेखक का ईमानदार होना अति आवश्यक है,उसे ऐसा लिखना चाहिए तो समाज को आईना दिखा सकें एक अच्छी सीख दे सकें लोगों को...
और मेरे अन्दर का लेखक बहुत ज्यादा चुलबुला है,इसलिए तो हास्य लिख पाता है,थोड़ा गम्भीर भी है इसलिए स्त्री विमर्श कहानियांँ ज्यादा लिखता है,अन्तर्मुखी कम बहिर्मुखी ज्यादा है,इतना खोजी है कि जब तक उसे नहीं लगता कि ये कहानी सही दिशा में जा रही है तो वो उसे नहीं लिखता,फिर पाठक उसे जितनी भी गालियाँ क्यों ना देते रहें,जब लिखता है तो दिल से लिखता है नहीं तो नहीं लिखता,अगर मेरे अन्दर के लेखक का लिखने का मन नहीं है तो फिर चाहें ब्रह्मा जी ही क्यों ना धरती पर उतर आएं वो नहीं लिखता,क्योंकि उसे लेखन में खानापूर्ति करना पसंद नहीं....
मेरे भीतर का लेखक बहुत ही संवेदनशील है,अगर वो अपनी कहानी में कोई दुख का क्षण लिख रहा होता है तो वो खुद ही रो पड़ता है,जब वो लिखता है तो बहुत गहराई से लिखता है,उसकी कोशिश रहती है कि वो अपनी कहानियों को अपना सौ प्रतिशत मन देकर लिखें,लेखन उसका सुकून और चैन है,वो अपनी कहानियों के चरित्र के साथ जीता है,उसे लिखते वक्त ऐसा लगता है कि वो उसके साथ हो रहा है,
जैसा मेरे भीतर के लेखक का लेखन है वैसा ही उसका व्यक्तित्व भी है,थोड़ा हठीला,थोड़ा विद्रोही,थोड़ा हँसमुँख,थोड़ा शर्मिला,थोड़ा बेशर्म,थोड़ा नास्तिक,थोड़ा आस्तिक,थोड़ा संवेदनशील,थोड़ा कठोर,कभी वाचाल तो कभी मूक,थोड़ा सिरफिरा,थोड़ा सिम्पल और बहुत ज्यादा काँम्प्लीकेटेड.....
मुझे कभी पता ही नहीं था कि मैं कभी लेखक बनूँगी,क्योंकि मैं साइंस की स्टूडेंट थी तो इस बारें में कभी विचार ही नहीं आया,पढ़ाई करते करते शादी हो गई,शादी के बाद गवर्नमेंट जाँब,इस बीच कभी भी कुछ नहीं लिखा और ना ही लिखने का शौक था,हाँ..कभी कभार पढ़ती जरूर थी,जाँब के बाद पढने की आदत भी छूट गई क्योंकि इतना समय ही नहीं होता था,ऊपर से गृहस्थी के काम काज भी बहुत होते थे,फिर बेटे के पैदा होने के बाद मजबूरीवश जाँब छोड़नी पड़ी,क्योंकि उसे सम्भालने वाला कोई नहीं था,हिम्मत करके जाँब तो छोड़ दी लेकिन जाँब छोड़ने के बाद एहसास हुआ कि ये फैसला गलत था,आजकल के जमाने में कौन गवर्नमेंट जाँब छोड़ता है,लेकिन फिर खुद को सम्भाला और पूरा ध्यान बच्चे पर लगा दिया,बच्चा जब स्कूल जाने लगा तो जाँब छोड़ना बहुत अखरने लगा,इस बीच फिर से मैनें किताबों का सहारा लिया और बहुत किताबें पढ़ी,फिर एक रोज पतिदेव को प्रतिलिपि दिखा तो उन्होंने कहा कि तुम लिखना क्यों नहीं शुरू करती?
मैनें कहा ये सब लिखना...इखना...मेरे बस की बात नहीं,विज्ञान वर्ग वाली छात्रा भला लेखक कैसें बन सकती है,उन्होंने कहा कोशिश करो,एक बार लिखकर तो देखो शायद कुछ बात बन जाएं और फिर उन्होंने मेरा एकाउंट बना दिया प्रतिलिपि पर,मैनें कई महीनों तक प्रतिलिपि पर कुछ नहीं लिखा,लेकिन फिर एक दिन लिखने का सोचा और पहली कहानी लिखी.... दाँ एण्ड....कहानी का नाम ही दाँ एण्ड था...
उसको पाठकों का बहुत प्यार मिला,तो थोड़ी हिम्मत बढ़ी इसके बाद मैनें दूसरी कहानी त्याग लिखी,वो भी सबको पसंद आई,इसके बाद बहुत सी लघुकथाएँ लिखीं और फिर तबसे लिखने का सिलसिला जारी है, इस बीच मैं बहुत सारे एप से जुड़ी और पिछले वर्ष मैं नवंबर २०२१ में लेखनी से जुड़ी,मुझे किसी ने बताया नहीं था इस एप के बारें ,मैंनें इसे गूगल में देखा और लेखनी से जुड़ने का सोचा,पहलेपहल तो कुछ समझ नहीं आया,फिर आलिया जी मुझे बताया कि रचनाएँ कैसें पोस्ट करनी है?बीच में कुछ महीनों के लिए किन्हीं निजी कार्यों वश लिख ना पाई,फिर आलिया जी का फोन आया तो मैनें उनसे कहा कि ब्यस्त थी....
मैं व्हाट्सएप पर ज्यादा मौजूद नहीं रहती तो आप सब लेखक ये मत समझिएगा कि मैं घमंडी हूँ,मैं व्हाट्सएप पर अपनी रचनाएँ भी शेयर नहीं करतीं,लेकिन मैं आप सब लेखकों की टाँग खिचाई और नोकझोंक देखती रहती हूँ व्हाट्सएप पर,लेखनी ने मुझे एक नई पहचान दी है,यहाँ मैं बेधड़क दूसरे महान लेखकों की रचनाएँ भी पोस्ट कर सकती हूँ,जो खासकर मुझे निजी तौर पर पसंद आतीं हैं,आशा करती हूँ कि लेखनी का साथ और आप सबका साथ यूँ ही बना रहेगा,मेरे जैसे तुच्छ लेखकों को ऐसा प्लेटफार्म मिलना बड़े भाग्य वाली बात है....
मुझे कविता लिखना नहीं आता लेकिन फिर भी कोशिश की है,लेखनी के लिए चंद लाइनें.....
लेखनी पर रचना रुपी सुन्दर दुल्हन यूँ सज के आई है,
हँस उठें हैं गद्य-काव्य कि लेखन की लेखनी से आज
सगाई है,
लगा है मेला दोहा,सोरठा,छंद और कविताओं का ,
झिलमिला उठे हैं तारें और आज हँस उठा है चाँद भी,
मजमा सा लगा है लेखकों और पाठकों का,
ऐसा लगता है कि लेखनी की बारात सी आई है,
सबके होठों पर हँसी है,आँखों में गज़ब की रौशनाई है,
अल्लाह का मेहर है,लेखनी रूपी दुल्हन हम सबकी
जिन्दगी में आई है.......🙏🙏😊😊
समाप्त.....
सरोज वर्मा.....
भानुप्रिया सिंह
04-Jan-2023 07:05 PM
Very nice
Reply
shweta soni
03-Jan-2023 07:00 PM
Behtarin rachana 👌
Reply
Renu
03-Jan-2023 03:34 PM
बहुत ही सुन्दर 👍👍🌺
Reply